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अफ्रीका का पर्यावरणीय संकट | Africa’s Environment Report 2025

अफ्रीका का पर्यावरणीय संकट: स्टेट ऑफ अफ्रीका’स एनवायरनमेंट 2025 रिपोर्ट का विश्लेषण

1. सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis)

सारांश:
18 सितंबर, 2025 को इथियोपिया की राजधानी अदिस अबाबा में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) द्वारा ‘स्टेट ऑफ अफ्रीका’स एनवायरनमेंट 2025’ रिपोर्ट जारी की गई। यह रिपोर्ट विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के आंकड़ों पर आधारित है और चित्रित करती है कि अफ्रीका वैश्विक जलवायु आपातकाल का प्रमुख केंद्र बन गया है। वर्ष 2024 महाद्वीप का अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा, जिसके कारण चरम मौसमी घटनाओं, स्वास्थ्य संकटों और भारी आर्थिक क्षति में वृद्धि हुई है।

राजधानी: अदिस अबाबा (इथियोपिया)
भौगोलिक अवस्थिति: अफ्रीका महाद्वीप, भूमध्य रेखा के दोनों ओर फैला हुआ।
भौगोलिक विशेषताएं: इसमें सहारा रेगिस्तान, सवाना घास के मैदान, कांगो वर्षावन, महान रिफ्ट घाटी और नील नदी जैसी प्रमुख नदी प्रणालियाँ शामिल हैं। यह अटलांटिक और हिंद महासागर से घिरा हुआ है।

संदर्भ + पृष्ठभूमि:
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है, लेकिन इसके प्रभाव असमान रूप से वितरित हैं। अफ्रीका, जो वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में केवल 4% का योगदान देता है, जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर दुष्प्रभावों को झेल रहा है। यह रिपोर्ट इसी असमानता और उत्पन्न हो रहे गंभीर संकट को दस्तावेज करती है।

मुद्दे/चुनौतियाँ:

  • तापमान वृद्धि: उत्तरी अफ्रीका सहित पूरे महाद्वीप में तापमान में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। शताब्दी के अंत तक 3-6°C की वृद्धि की संभावना है।
  • समुद्री हीटवेव: आसपास के समुद्रों में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने समुद्री ecosystems को नुकसान पहुँचाया है और चक्रवातों की तीव्रता बढ़ाई है।
  • चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि: बाढ़, सूखा और चक्रवातों की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि से जन-धन की भारी हानि हुई है।
  • बढ़ता स्वास्थ्य संकट: मलेरिया और हैजा जैसी मच्छर और जलजनित बीमारियों के प्रसार में वृद्धि हुई है।
  • खाद्य एवं जल संकट: कुपोषण और जल तनाव एक बड़ी आबादी के लिए खतरा बन गए हैं, जिससे विस्थापन की संभावना बढ़ गई है।
  • आर्थिक असमानता: जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली आर्थिक क्षति अनुकूलन और विकास के प्रयासों में बाधक है।

राष्ट्रीय + अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव:

  • राष्ट्रीय: अफ्रीकी देशों की आंतरिक सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक संरचना खतरे में है। खाद्य असुरक्षा और जल के लिए संघर्ष बढ़ सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय: बड़े पैमाने पर जलवायु-प्रेरित विस्थापन महाद्वीप से बाहर शरणार्थी संकट पैदा कर सकता है। वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाएँ (जैसे कोको) प्रभावित हो सकती हैं। यह जलवायु न्याय पर वैश्विक बहस को और तीव्र करता है।

आगे का रास्ता / समाधान:

  • जलवायु वित्त: विकसित देशों को जलवायु वित्त के लिए अपने वादों (जैसे $100 बिलियन प्रति वर्ष) को पूरा करना चाहिए और नुकसान एवं क्षति कोष को operational बनाने में सहयोग करना चाहिए।
  • Tस्थानीय अनुकूलन: सूखा-सहिष्णु फसलों, जल संरक्षण तकनीकों और चेतावनी प्रणालियों को मजबूत करने पर जोर देना।
  • हरित ऊर्जा संक्रमण: अफ्रीका की विशाल सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का दोहन करके एक टिकाऊ भविष्य का निर्माण करना।
  • क्षेत्रीय सहयोग: आपदा प्रबंधन, जलवायु डेटा साझाकरण और अनुकूलन रणनीतियों के लिए अफ्रीकी संघ जैसे मंचों का उपयोग बढ़ाना।
  • वैश्विक नेतृत्व: COP जैसे फोरम में अफ्रीकी देशों को एकजुट होकर अपनी चिंताओं और हितों को रखना चाहिए।

Extra Data/Report/Case Studies:

  • ग्रेट ग्रीन वॉल: सहारा के दक्षिणी किनारे पर desertification को रोकने के लिए शुरू की गई एक पहल, जो भूमि क्षरण को रोकने और आजीविका में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण अनुकूलन परियोजना है।
  • लॉस एंड डैमेज फंड: COP27 में स्थापित, यह फंड जलवायु परिवर्तन से होने वाले अपरिहार्य नुकसान से निपटने के लिए विकासशील देशों की सहायता करने हेतु है।


2. यूपीएससी प्रासंगिकता (UPSC Relevance)

  • जीएस पेपर III:
    • पर्यावरण: जलवायु परिवर्तन - प्रभाव, अनुकूलन, और शमन; आपदा प्रबंधन।
    • सुरक्षा: खाद्य सुरक्षा, संसाधनों के लिए संघर्ष से उत्पन्न चुनौतियाँ।
    • अर्थव्यवस्था: विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव।
  • जीएस पेपर II:
    • अंतर्राष्ट्रीय संबंध: वैश्विक समझौते (UNFCCC, पेरिस समझौता), जलवायु न्याय, विकसित vs विकासशील देशों की भूमिका, अफ्रीकी संघ।
    • निबंध: जलवायु परिवर्तन, वैश्विक असमानता, सतत विकास, अफ्रीका की भूमिका आदि पर विषय।

कीवर्ड और आयाम:

  • शासन (Governance): जलवायु नीति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, अफ्रीकी संघ की भूमिका।
  • पर्यावरण (Environment): जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि, अनुकूलन, शमन।
  • अर्थव्यवस्था (Economy): आर्थिक हानि, जलवायु वित्त, हरित अर्थव्यवस्था, कर्ज का बोझ।
  • सामाजिक (Society): स्वास्थ्य, विस्थापन, खाद्य सुरक्षा, सामाजिक अशांति।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR): जलवायु न्याय, वैश्विक दक्षिण, UNFCCC।


3. यूपीएससी पिछले वर्ष के प्रश्न

Related Prelims PYQ:

  • (2023) ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC)’, ‘पेरिस समझौता’ आदि से संबंधित प्रश्न।
  • (2022) ‘ग्रेट ग्रीन वॉल’ पहल के संबंध में प्रश्न।

Related Mains PYQ:

  • (2023) "जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसके लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता है।" टिप्पणी कीजिए।
  • (2022) भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग के प्रमुख क्षेत्रों की विवेचना कीजिए। जलवायु परिवर्तन इस सहयोग को कैसे प्रभावित कर रहा है?

संभावित प्रश्न भविष्य के लिए:

  • प्रारंभिक परीक्षा: WMO, IPCC, UNFCCC जैसे संगठनों के कार्यों से संबंधित वस्तुनिष्ठ प्रश्न।
  • मुख्य परीक्षा: "अफ्रीका जलवायु परिवर्तन के सबसे गंभीर प्रभावों का शिकार क्यों है, भले ही इसका उत्सर्जन में योगदान नगण्य है? जलवायु न्याय की इस दुविधा पर चर्चा करें।"


4. उत्तर लेखन अभ्यास (Answer Writing Practice)

Q. जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में 'जलवायु न्याय' की अवधारणा की व्याख्या कीजिए। अफ्रीका महाद्वीप पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इस अवधारणा को कैसे उजागर करते हैं? (15 अंक, 250 शब्द)

👉 मॉडल उत्तर संरचना

परिचय: जलवायु न्याय का तात्पर्य जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और उनसे निपटने की जिम्मेदारी के नैतिक और राजनीतिक वितरण से है। यह मानता है कि जिन लोगों ने संकट पैदा करने में सबसे कम योगदान दिया है, वे अक्सर इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

मुख्य भाग:

  • असमान उत्सर्जन बनाम प्रभाव: अफ्रीका का वैश्विक उत्सर्जन में योगदान ~4% है, लेकिन यह तापमान वृद्धि, चरम मौसमी घटनाओं और समुद्री हीटवेव से सबसे अधिक प्रभावित है, जैसा कि SOAE 2025 रिपोर्ट में दर्ज है।
  • आर्थिक असमानता: रिपोर्ट अफ्रीका में भारी आर्थिक नुकसान (प्रति वर्ष अरबों डॉलर) की बात करती है, जो विकासात्मक लक्ष्यों को पीछे धकेल रहा है। विकसित देशों द्वारा वादा किया गया जलवायु वित्त अपर्याप्त है।
  • सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: खाद्य एवं जल संकट, बीमारियों का बढ़ना (मलेरिया, हैजा) और बड़े पैमाने पर विस्थापन गरीब और हाशिए के समुदायों को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है, जिससे मौजूदा असामानताएँ और बढ़ रही हैं।

निष्कर्ष: इस प्रकार, अफ्रीका की स्थिति जलवायु अन्याय का एक स्पष्ट उदाहरण है। इसका समाधान केवल तकनीकी हल नहीं, बल्कि ऐतिहासिक जिम्मेदारी, पर्याप्त वित्तपोषण और विकासशील दुनिया के लिए अनुकूलन में सहयोग पर आधारित एक न्यायसंगत वैश्विक ढाँचा तैयार करने में निहित है। पेरिस समझौते के सिद्धांतों (सामान्य लेकिन विभेदित जिम्मेदारियों) को मजबूत करना आवश्यक है 

5. कीवर्ड एक्सप्लेनेशन (Keyword Explanation)

  • जलवायु न्याय (Climate Justice): एक ऐसा सामाजिक आंदोलन और अवधारणा जो जलवायु परिवर्तन को एक नैतिक और राजनीतिक मुद्दे के रूप में देखती है, न कि केवल एक पर्यावरणीय या भौतिक मुद्दे के रूप में। यह इस बात पर जोर देती है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गरीबों और हाशिए के समुदायों पर असमान रूप से पड़ते हैं, जबकि इसके लिए सबसे अधिक जिम्मेदार धनी देश और न cooperate हैं।
  • अनुकूलन (Adaptation): जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य के प्रभावों के अनुकूल होने और उनके नुकसानों को कम करने की प्रक्रिया। उदाहरण: बाढ़ प्रतिरोधी बुनियादी ढाँचा, सूखा-सहिष्णु फसलें, चेतावनी प्रणालियाँ।
  • शमन (Mitigation): जलवायु परिवर्तन के कारण, मुख्यतः ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने की प्रक्रिया। उदाहरण: नवीकरणीय ऊर्जा में संक्रमण, ऊर्जा दक्षता, वनीकरण।
  • जलवायु वित्त (Climate Finance): वह वित्तीय सहायता जो विकासशील देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने (शमन) और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के अनुकूलन (अनुकूलन) में मदद करने के लिए प्रदान की जाती है। विकसित देशों ने वार्षिक रूप से $100 बिलियन जुटाने का वादा किया था।
  • नुकसान और क्षति (Loss and Damage): जलवायु परिवर्तन के those प्रतिकूल प्रभाव जिनसे अनुकूलन द्वारा भी बचा नहीं जा सकता, जैसे चक्रवातों से होने वाली तत्काल तबाही या समुद्र के स्तर में वृद्धि से द्वीप देशों के डूबने जैसी धीमी गति से होने वाली घटनाएँ। COP27 में इसके लिए एक विशेष कोष स्थापित करने पर सहमति बनी।

References


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