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बंजारा समुदाय की एसटी दर्जे की मांग - Banjara Community ST Status Demand

 बंजारा समुदाय का एसटी दर्जे की मांग

1 📊 सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis) :

(लेख का संक्षिप्त सार)
महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठों को कुनबी प्रमाणपत्र जारी करने के निर्णय के बाद, राज्य के बंजारा समुदाय ने अपनी अनुसूचित जनजाति (एसटी) की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। यह समुदाय वर्तमान में महाराष्ट्र में ओबीसी श्रेणी में है, जबकि पड़ोसी राज्यों में इसे एसटी या एससी का दर्जा प्राप्त है।

संदर्भ + पृष्ठभूमि (Context + background) :

  • बंजारा एक स्वदेशी, घुमंतू जनजाति है, जिसे विभिन्न क्षेत्रों में लंबाडी, गोर, नायक आदि नामों से जाना जाता है।
  • ऐतिहासिक रूप से, 1930 के दशक में इन्हें कई प्रांतों की जनजातीय सूची में शामिल किया गया था और 1920 के हैदराबाद गजट में भी इन्हें जनजाति बताया गया था।
  • माना जाता है कि मंडल आयोग के बाद की अवधि में गलत व्याख्या के कारण महाराष्ट्र में इन्हें ओबीसी सूची में डाल दिया गया।
  • औपनिवेशिक काल में इन्हें "क्रिमिनल ट्राइब" घोषित किया गया, आज़ादी के बाद "विमुक्त जनजाति" में रखा गया।

मुद्दे/चुनौतियाँ (Issues/challenges) :

  • राज्यवार असमान दर्जा: यह मुद्दा संविधान की अनुसूचियों में राज्यवार भिन्नता की चुनौती को उजागर करता है। एक ही समुदाय को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दर्जा दिया गया है (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा में एसटी; कर्नाटक में एससी; महाराष्ट्र में ओबीसी)।
  • प्रशासनिक और राजनीतिक चुनौती: किसी समुदाय का दर्जा बदलना एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें केंद्र सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण है और यह अक्सर राजनीतिक विवादों में घिर जाती है।
  • आरक्षण की राजनीति: मराठों को आरक्षण दिए जाने के बाद अन्य समुदायों द्वारा अपनी मांगें तेज करना, आरक्षण की सीमित ‘केक’ के लिए प्रतिस्पर्धा को दर्शाता है।

प्रभाव (राष्ट्रीय + अंतर्राष्ट्रीय) (Impact (National + International) :

  • राष्ट्रीय: इस मामले से जनजातीय दर्जे की एकरूपता और केंद्र-राज्य समन्वय की बहस छिड़ सकती है। यह अन्य विमुक्त जनजातियों (Denotified Tribes) के समान मांगों को भी बल दे सकता है।
  • राज्य स्तर पर: महाराष्ट्र में सामाजिक समरसता पर प्रभाव पड़ सकता है और विभिन्न समुदायों के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

आगे का रास्ता / समाधान (Way Forward / Solutions) :

  • तथ्यात्मक शोध: समुदाय की ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति का गहन अध्ययन करने के लिए एक निष्पक्ष और वैज्ञानिक आधार पर जनजातीय शोध संस्थान या राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की रिपोर्ट ली जा सकती है।
  • केंद-राज्य सहयोग: महाराष्ट्र सरकार को केंद्र सरकार को एक सिफारिश भेजनी चाहिए, जिसके आधार पर संसद में कानून बनाकर अनुसूची में संशोधन किया जा सके।
  • समग्र दृष्टिकोण: आरक्षण की राजनीति से ऊपर उठकर समुदाय की वास्तविक सामाजिक-शैक्षिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

Extra Data/Case Studies:

  • संदूर लम्बानी कढ़ाई (GI टैग, कर्नाटक) → बंजारा कला का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त उदाहरण।
  • नृत्य परंपराएँ: अग्नि नृत्य, घूमर, चरी नृत्य।

2 📚 यूपीएससी प्रासंगिकता (UPSC Relevance) :

  • GS Paper I: भारतीय समाज, जनजातीय समूह, सांस्कृतिक विविधता।
  • GS Paper II: सामाजिक न्याय, आरक्षण नीति, राज्य नीति।
  • GS Paper III: समावेशी विकास, कमजोर वर्गों का कल्याण।
  • Essay Paper: "भारत में सामाजिक न्याय और आरक्षण का बदलता परिदृश्य"।

कीवर्ड और आयाम (Keywords & Dimensions) :
शासन, सामाजिक न्याय, संविधान, अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति, ओबीसी, आरक्षण नीति, विमुक्त जनजाति, केंद्र-राज्य संबंध।

(Banjara Tribe, Reservation Politics, Social Justice, OBC vs ST, Denotified Tribes, Mandal Commission, Cultural Identity, GI Tag, Tribal Rights)

Conclusion:
बंजारा समुदाय की मांग केवल आरक्षण लाभ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत की विविध सामाजिक संरचना में समान न्याय सुनिश्चित करने का प्रश्न है। एक राष्ट्रीय स्तर की समीक्षा समिति और समग्र नीति इस समस्या का संतुलित समाधान दे सकती है।

3 🔗 यूपीएससी पिछले वर्ष के प्रश्न

Related Prelims PYQ:

  • (2020) भारत में ‘विमुक्त जनजाति’ (Denotified Tribes) और ‘जनजातीय समुदाय’ (Nomadic Tribes) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए...
  • 2014: "निम्नलिखित में से कौन-सी जनजाति भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत है?"

Related Mains PYQ:

  • (2018) भारत में सामाजिक न्याय की प्राप्ति में आरक्षण की नीति कितनी सफल रही है? परीक्षण कीजिए।
  • (2016) महिलाओं और भारत के दलित एवं आदिवासी समुदायों के खिलाफ होने वाले अपराधों में वृद्धि क्या दर्शाती है? चर्चा कीजिए।
  • 2017 (GS I): "भारतीय समाज में आरक्षण व्यवस्था की भूमिका और चुनौतियाँ पर चर्चा कीजिए।"
  • 2020 (GS II): "आरक्षण व्यवस्था और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाने में आने वाली चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिए।"

संभावित प्रश्न (भविष्य के लिए):

  • प्रारंभिक परीक्षा: बंजारा समुदाय, गोर बोली, या संदूर लंबानी कढ़ाई (जीआई टैग) के बारे में तथ्यात्मक प्रश्न।
  • मुख्य परीक्षा: "भारत में आरक्षण की नीति राज्यवार भिन्नता के सिद्धांत पर आधारित है। इसके फायदे और चुनौतियों की विवेचना कीजिए।" (15 अंक)

4 ✍️ उत्तर लेखन अभ्यास

प्र. महाराष्ट्र में बंजारा समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा प्राप्त करने की मांग से उत्पन्न मुद्दों की चर्चा कीजिए। क्या आपको लगता है कि देश भर में जनजातीय वर्गीकरण में एकरूपता होनी चाहिए? (15 अंक)

👉 मॉडल उत्तर संरचना:

परिचय (परिभाषा/संदर्भ): 
  • भारतीय संविधान की अनुसूचियाँ राज्य और क्षेत्र के आधार पर भिन्न-भिन्न हैं। बंजारा (लंबाडी) समुदाय इसका एक प्रमुख उदाहरण है, जिसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दर्जा प्राप्त है।

मुख्य भाग (मुद्दे, उदाहरण, विश्लेषण):


मुद्दे: 
  • राज्यवार असमानता के कारण समान समुदाय को मिलने वाले लाभों में भारी अंतर। महाराष्ट्र में ओबीसी दर्जे के कारण शिक्षा और नौकरी में पर्याप्त लाभ न मिल पाना। ऐतिहासिक दस्तावेजों (1930 की जनजातीय सूची, 1920 का हैदराबाद गजट) और वर्तमान वर्गीकरण में विसंगति।
उदाहरण: 
  • आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा में एसटी; कर्नाटक में एससी; महाराष्ट्र में ओबीसी का दर्जा।
विश्लेषण: 
  • यह मामला संवैधानिक प्रावधानों की जटिलता और सामाजिक न्याय के विकेंद्रीकृत मॉडल को दर्शाता है। एक तरफ यह स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल है, तो दूसरी तरफ इससे विवाद और असमानता पैदा होती है।

निष्कर्ष (आगे का रास्ता + संतुलित दृष्टिकोण):

  • एकरूपता सैद्धांतिक रूप से वांछनीय है, लेकिन भारत की विविधता और स्थानीय संदर्भों को देखते हुए यह व्यावहारिक नहीं लगती।
  • आगे का रास्ता यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर एक पारदर्शी और वैज्ञानिक तंत्र विकसित करें, जो समुदायों के वर्गीकरण का आधार तय करे। साथ ही, मौजूदा विसंगतियों को दूर करने के लिए नियमित समीक्षा की जानी चाहिए ताकि सभी वंचित समूहों को न्याय मिल सके।


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