राजनीतिक अशांति तथा सोशल मीडिया
1. सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis)
📌 संक्षिप्त सार (लेख का सार):
लेख राजनीतिक अशांति के दौरान सोशल मीडिया कंपनियों की भूमिका, चुनौतियों और जवाबदेही पर केंद्रित है। यह दर्शाता है कि कैसे ये प्लेटफॉर्म गलत सूचना फैलाने, सेंसरशिप और अनियमित मॉडरेशन का माध्यम बनते हैं, जबकि अपने वाणिज्यिक हितों को प्राथमिकता देते हैं। भारत सहित वैश्विक उदाहरणों के माध्यम से, लेख अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विनियमन के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर देता है।
📌 संदर्भ + पृष्ठभूमि (Context + Background):
- वैश्विक संदर्भ: दुनिया भर में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स लोकतांत्रिक संवाद और सामूहिक कार्रवाई के महत्वपूर्ण मंच बन गए हैं।
- मूल विषय: हालाँकि, राजनीतिक उथल-पुथल के दौरान, इन प्लेटफॉर्म्स का दुरुपयोग गलत सूचना फैलाने, नफ़रत फैलाने और हिंसा को भड़काने के लिए किया जाता है, जिससे सरकारों द्वारा कड़े विनियमन और कभी-कभी शटडाउन की माँग उठती है।
- कंपनियों की भूमिका: बहुराष्ट्रीय सोशल मीडिया कंपनियाँ, जिनके मुख्य रूप से वाणिज्यिक हित हैं, अक्सर इन स्थितियों में निष्क्रिय या असंगत प्रतिक्रिया देती हैं, जिससे नागरिक समाज और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को नुकसान पहुँचता है।
📌 मुद्दे/चुनौतियाँ (Issues/Challenges):
- एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह: सनसनीखेज और विभाजनकारी सामग्री को बढ़ावा देकर सामाजिक तनाव में वृद्धि।
- पारदर्शिता का अभाव: सामग्री मॉडरेशन, पोस्ट हटाने और सरकारी अनुरोधों के मामले में अस्पष्ट नीतियाँ।
- जवाबदेही की कमी: "प्लेटफॉर्म तटस्थता" का बहाना बनाकर जिम्मेदारी से बचना।
- डिजिटल विभाजन: इंटरनेट शटडाउन से गरीब और तकनीकी रूप से कमजोर उपयोगकर्ता सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
- विदेशी हस्तक्षेप: घरेलू राजनीति को प्रभावित करने के लिए प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग की संभावना।
- बयानबाजी और कार्य के बीच अंतर: कंपनियों का नैतिक सिद्धांतों पर सैद्धांतिक समर्थन लेकिन व्यवहार में उनका पालन न करना।
📌 राष्ट्रीय + अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (National + International Impact):
- राष्ट्रीय (भारत): आईटी नियम, 2021 लागू करके सरकार ने प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह ठहराने का प्रयास किया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम राष्ट्रीय सुरक्षा/सामाजिक सद्भाव पर बहस जारी है।
अंतर्राष्ट्रीय:
- नेपाल/म्यांमार/ईरान: प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध से विरोध प्रदर्शनों का दमन, व्यवसायों को नुकसान और जानकारी का अभाव।
- नाइजीरिया: ट्विटर पर प्रतिबंध से आर्थिक नुकसान (~$26 मिलियन/दिन)।
- अमेरिका: कैपिटल दंगे जैसी घटनाओं में प्लेटफॉर्म की भूमिका पर सवाल।
- रूस: टेलीग्राम जैसे प्लेटफॉर्म का तकनीकी प्रतिरोध, लेकिन उपयोगकर्ताओं के प्रति जिम्मेदारी का अभाव।
📌 आगे का रास्ता / समाधान (Way Forward / Solutions):
- सामग्री मॉडरेशन एल्गोरिदम और नीतियों में पारदर्शिता बढ़ाना।
- स्वतंत्र निगरानी तंत्र और अंकेक्षण (Audit) की स्थापना।
- लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए एक वैश्विक नियामक ढाँचा (Multistakeholder Model) विकसित करना।
- सांता क्लारा सिद्धांतों जैसे मानदंडों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करना।
- डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देकर उपयोगकर्ताओं को गलत सूचना की पहचान करने में सक्षम बनाना।
2. यूपीएससी प्रासंगिकता (UPSC Relevance)
- जीएस पेपर: GS-II (शासन, संविधान, सामाजिक न्याय) | GS-III (सुरक्षा, प्रौद्योगिकी) | निबंध
- कीवर्ड और आयाम (Keywords & Dimensions):
- शासन (Governance): IT Rules 2021, Regulation vs Freedom, Accountability of Private Actors.
- सामाजिक न्याय (Social Justice): Digital Divide, Access to Information as a Right.
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR): Digital Sovereignty, Multinational Corporations, UNHRC Resolutions.
- सुरक्षा (Security): Misinformation, Social Unrest, Foreign Interference.
- प्रौद्योगिकी (Technology): Algorithmic Bias, AI Ethics, Platform Neutrality.
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3. यूपीएससी पिछले वर्ष के प्रश्न (UPSC Previous Year Questions)
📌 Related Prelims PYQ:
- (2022)
भारत में ‘डिजिटल व्यक्ति’ की अवधारणा सर्वप्रथम निम्नलिखित में से किसके द्वारा प्रस्तावित की गई?
(a) डिजिटल इंडिया टास्क फोर्स की रिपोर्ट
(b) आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19
(c) भारत का डिजिटल संचार नीति, 2018
(d) भारत का न्यायमूर्ति बी.एन. श्रीकृष्ण समिति की रिपोर्ट
(उत्तर: b)
- (2021)
‘डिजिटल सर्विलांस’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(a)...
(यह प्रश्न डेटा गोपनीयता और निगरानी की चुनौतियों से जोड़ता है)
📌 Related Mains PYQ:
- (GS-II 2022) "सूचना प्रौद्योगिकी (अंतर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के प्रावधानों की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए।"
- (GS-III 2021) "सोशल मीडिया का लोकतंत्रीकरण पर क्या प्रभाव पड़ा है? सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के उपाय सुझाइए।"
- (निबंध 2020) "डिजिटल दुनिया में नैतिकता: चुनौतियाँ और अवसर"
📌 संभावित प्रश्न भविष्य के लिए (Expected Possible Questions):
- प्रारंभिक परीक्षा: सांता क्लारा सिद्धांत, आईटी नियम 2021, UNHRC और इंटरनेट शटडाउन से संबंधित तथ्यात्मक प्रश्न।
मुख्य परीक्षा:
- "सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के विनियमन में 'स्व-नियमन' बनाम 'सांविधिक नियमन' की बहस का विश्लेषण कीजिए।"
- "क्या इंटरनेट की पहुँच एक मौलिक अधिकार है? भारत में इंटरनेट शटडाउन के नैतिक और कानूनी निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।"
4. उत्तर लेखन अभ्यास (Answer Writing Practice)
Q. राजनीतिक अशांति के दौरान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की भूमिका और जवाबदेही एक जटिल चुनौती है। विश्लेषण कीजिए। (15 marks) (250 words)
👉 मॉडल उत्तर संरचना:
परिचय:
सोशल मीडिया ने सार्वजनिक संवाद को लोकतांत्रिक बनाया है, लेकिन राजनीतिक संकट के दौरान यह गलत सूचना और विभाजन का वाहक भी बन जाता है। इस दोहरी भूमिका ने प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही को एक गंभीर शासन संबंधी मुद्दा बना दिया है।
मुख्य भाग:
- चुनौतियाँ:
- विभाजनकारी सामग्री का प्रवर्धन: एल्गोरिदम सनसनीखेज सामग्री को प्राथमिकता देकर सामाजिक तनाव बढ़ाते हैं (जैसे अमेरिकी कैपिटल दंगा)।
- निष्क्रियता और अनिश्चितता: कंपनियाँ अक्सर प्रतिबंधों के खिलाफ मजबूती से खड़ी नहीं होतीं (नेपाल, नाइजीरिया केस), जिससे आर्थिक और लोकतांत्रिक नुकसान होता है।
- पारदर्शिता का अभाव: मॉडरेशन नीतियों और सरकारी अनुरोधों की गोपनीयता जवाबदेही में बाधक है।
- डिजिटल विभाजन: शटडाउन से वंचित समूहों की信息 तक पहुँच बाधित होती है, जबकि समृद्ध वर्ग VPN जैसे विकल्प ढूंढ लेता है।
- भारत का प्रयास: आईटी नियम, 2021 प्लेटफॉर्म्स को जवाबदेह ठहराने और Grievance Redressal Mechanism बनाने का एक कदम है, लेकिन यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर दखलंदाजी के चिंताओं से भी जुड़ा है।
निष्कर्ष:
इस जटिल समस्या का समाधान एक संतुलित दृष्टिकोण में निहित है। सरकारों, टेक कंपनियों, नागरिक समाज और तकनीकी विशेषज्ञों के सहयोग से एक बहु-हितधारक (Multistakeholder) मॉडल विकसित करने की आवश्यकता है। सांता क्लारा सिद्धांतों के अनुरूप पारदर्शिता, स्वतंत्र निगरानी और मानवाधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता ही आगे का रास्ता है।

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