Recent Posts

header ads

SC निर्णय: महिला राजनीतिक कार्यकर्ता और POSH Act - Supreme Court Verdict 2025

1. सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis)

📌 संदर्भ + पृष्ठभूमि (Context + Background)

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के दायरे में महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग की गई थी। न्यायालय ने माना कि ऐसा समावेशन अधिनियम के इच्छित दायरे से परे दूरगामी परिणाम उत्पन्न करेगा। POSH अधिनियम को विशाखा दिशानिर्देशों (1997) को statutory force प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया था, जो कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करता है। यह अधिनियम संगठित और असंगठित क्षेत्रों दोनों में काम करने वाली महिलाओं को कवर करता है, लेकिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं को नहीं, जिन्हें कर्मचारी के बजाय स्वयंसेवक माना जाता है

⚠️ मुद्दे/चुनौतियाँ (Issues/Challenges)

  • कानूनी सुरक्षा में अंतराल: राजनीतिक कार्यकर्ता, जो अक्सर लंबे समय तक काम करते हैं और power dynamics के अधीन होते हैं, वर्तमान में POSH अधिनियम के तहत कानूनी सुरक्षा से वंचित हैं।
  • राजनीतिक दलों में संस्थागत बाधाएँ: राजनीतिक दल अक्सर पुरुष-प्रधान संरचनाएँ बने रहते हैं और महिला सदस्यों के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दबाने या अनदेखा करने की प्रवृत्ति रखते हैं
  • रिपोर्टिंग में बाधाएँसामाजिक कलंकपीछे हटने का डर और आंतरिक शिकायत तंत्र की कमी महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए यौन उत्पीड़न की घटनाओं की रिपोर्ट करना मुश्किल बनाती है
  • कानूनी परिभाषाओं की सीमाएँ: POSH अधिनियम "कर्मचारी" और "कार्यस्थल" की परिभाषाएँ राजनीतिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक स्थानों (जैसे पार्टी कार्यालयों, चुनावी मैदानों) को पूरी तरह से शामिल नहीं करती हैं

🌍 राष्ट्रीय + अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (National + International Impact)

  • राष्ट्रीय प्रभाव: भारत में राजनीतिक दलों और संसद में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व (लोकसभा में केवल 13.6%) पहले से ही एक बड़ी चुनौती है. POSH सुरक्षा का अभाव इस अंतर को और बढ़ा सकता है, संभावित रूप से राजनीतिक भागीदारी में महिलाओं को हतोत्साहित करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा: भारत ने महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (CEDAW) की पुष्टि की है, जिसमें राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के साथ भेदभाव को समाप्त करने का प्रावधान है. POSH सुरक्षा का अभाव इस commitment के साथ असंगति पैदा कर सकता है।

🚀 आगे का रास्ता / समाधान (Way Forward / Solutions)

  • विधायी सुधार: संसद POSH अधिनियम में संशोधन पर विचार कर सकती है ताकि राजनीतिक कार्यकर्ताओं को स्पष्ट रूप से शामिल किया जा सके या राजनीतिक दलों को आंतरिक शिकायत समितियाँ (ICCs) स्थापित करने के लिए obligate किया जा सके
  • राजनीतिक दलों की स्व-नियमन: प्रमुख राजनीतिक दल आचार संहिता अपना सकते हैं और महिला सदस्यों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करने के लिए आंतरिक निवारण तंत्र स्थापित कर सकते हैं।
  • जागरूकता और क्षमता निर्माणमहिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को उनके अधिकारों और उपलब्ध कानूनी रास्तों (भले ही POSH के तहत नहीं) के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए। पार्टी के पदाधिकारियों के लिए लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण अनिवार्य किया जा सकता है।
  • न्यायिक सक्रियता: न्यायपालिका विशाखा दिशानिर्देशों के व्यापक सिद्धांतों की व्याख्या कर सकती है ताकि राजनीतिक सहभागिता सहित सार्वजनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित किया जा सके, भले ही एक specific कानून (POSH) लागू न हो।

तालिका: POSH अधिनियम - वर्तमान दायरा और संभावित विस्तार

पहलू

वर्तमान स्थिति

संभावित विस्तार/परिवर्तन

कवरेज

संगठित & असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारी

राजनीतिक कार्यकर्ता/स्वयंसेवक शामिल

परिभाषा

"कर्मचारी" और "कार्यस्थल" की परिभाषा सीमित

"कार्यस्थल" में पार्टी कार्यालय, चुनाव क्षेत्र शामिल

उपाय

आईसीसी का गठन अनिवार्य

राजनीतिक दलों के लिए आईसीसी जैसे तंत्र अनिवार्य

चुनौती

राजनीतिक कार्यकर्ता कवर नहीं

कानूनी परिभाषाओं को चुनौती, स्वैच्छिक स्वभाव

2. यूपीएससी प्रासंगिकता (UPSC Relevance)

📚 किस GS Paper (I/II/III/IV), Essay या Optional से जुड़ा है

  • GS Paper IIशासन, संविधान, सामाजिक न्याय के महत्वपूर्ण पहलुओं से संबंधित है - मौलिक अधिकार, महिला सशक्तिकरण, संसद द्वारा बनाए गए कानून और न्यायपालिका की भूमिका।
  • GS Paper Iसमाजशास्त्र (भारतीय समाज में महिलाओं की भूमिका) और सामाजिक मुद्दे (लिंग संबंधी मुद्दे) से जुड़ाव।
  • GS Paper IVनीतिशास्त्र (आचार संहिता) और मानवीय मूल्य (लैंगिक समानता) के दृष्टिकोण से देखा जा सकता है।
  • निबंध (Essay): लैंगिक समानता, सामाजिक न्याय, भारत में लोकतंत्र की चुनौतियों, शासन में न्यायपालिका की भूमिका जैसे विषयों से संबंधित।

🔑 कीवर्ड और आयाम (Keywords & Dimensions)

  • शासन (Governance): कानून का शासन, विधायी प्रक्रिया, न्यायिक समीक्षा, सार्वजनिक नीति, पारदर्शिता और जवाबदेही।
  • सामाजिक न्याय (Social Justice): लैंगिक न्याय, महिला अधिकार, सामाजिक न्याय, सशक्तिकरण, भेदभाव का उन्मूलन, सामाजिक परिवर्तन।
  • राजनीति (Polity): भारतीय संविधान (मौलिक अधिकार, नीति के निर्देशक सिद्धांत), संसद, न्यायपालिका की भूमिका, राजनीतिक दलों का कामकाज।
  • अंतर्राष्ट्रीय संबंध (International Relations): अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन (जैसे CEDAW), वैश्विक मानदंड, भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं का अनुपालन।
  • समाज (Society): सामाजिक संरचना, पितृसत्ता, सामाजिक मानदंड, सांस्कृतिक बाधाएँ, सामाजिक परिवर्तन।

3. यूपीएससी पिछले वर्ष के प्रश्न (UPSC Previous Year Questions)

🔍 Related Prelims PYQ (साल + प्रश्न)

  • 2023: भारत के संदर्भ में 'कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013' के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:

  1. यह अधिनियम देशीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों दोनों पर लागू होता है यदि वे भारत में कार्यरत हैं।

  2. अधिनियम के तहत, यौन उत्पीड़न की शिकायत करने का एक वर्ष के भीतर अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
    ऊपर दिए गए कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
    (a) केवल 1
    (b) केवल 2
    (c) 1 और 2 दोनों
    (d) न तो 1 और न ही 2
    (उत्तर: a)

📝 Related Mains PYQ (साल + प्रश्न)

  • 2021 (GS Paper II): "भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 की प्रभावकारिता की critically समीक्षा कीजिए। क्या आप मानते हैं कि यह अधिनियम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है? तर्क सहित बताएं।"
  • 2019 (GS Paper I): "भारत में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी में बाधा डालने वाले प्रमुख सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की व्याख्या कीजिए।"

🤔 संभावित प्रश्न भविष्य के लिए (Expected Possible Question in Future)

  • Prelims: POSH अधिनियम, विशाखा दिशानिर्देशों, CEDAW, संवैधानिक प्रावधानों (अनुच्छेद 15, 21) से संबंधित तथ्यात्मक प्रश्न।
  • Mains (GS II): "राजनीतिक कार्यकर्ताओं को POSH अधिनियम के दायरे से बाहर रखने के सर्वोच्च न्यायालय के recent निर्णय की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या यह महिला सशक्तिकरण के लिए भारत के संवैधानिक लक्ष्यों के साथ एक कदम पीछे है? समालोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।"
  • Essay: "न्यायालय के निर्णय से Beyond: भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए एक सही कानूनी ढांचे की आवश्यकता"

4. उत्तर लेखन अभ्यास (Answer Writing Practice)

Q. भारत में कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) की प्रभावकारिता की समीक्षा कीजिए। हाल के एक निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने इसके दायरे से महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बाहर रखा है। इस निर्णय के निहितार्थों की चर्चा कीजिए। (250 शब्द, 15 अंक)

👉 मॉडल उत्तर संरचना (Model Answer Structure)

परिचय (Introduction)

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act) के दायरे में महिला राजनीतिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग की गई थी। न्यायालय ने माना कि ऐसा समावेशन अधिनियम के इच्छित दायरे से परे दूरगामी परिणाम उत्पन्न करेगा

मुख्य भाग (Main Body)

  • POSH अधिनियम की प्रभावकारिता: POSH अधिनियम ने कार्यस्थलों पर यौन उत्पीड़न के मुद्दे को मुख्यधारा में लाने और इसके निवारण के लिए institutional mechanisms (जैसे आंतरिक शिकायत समितियाँ) स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, इसकी प्रभावकारिता असंगठित क्षेत्र में कमजोर रही है, और रिपोर्टिंग में कमीप्रतिशोध का डर और जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं
  • न्यायिक निर्णय के निहितार्थ: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं के लिए एक कानूनी सुरक्षा अंतराल उत्पन्न हो गया है। राजनीतिक दल अक्सर पुरुष-प्रधान संरचनाएँ होते हैं, और इस निर्णय से यौन उत्पीड़न की शिकायतों को दबाने या अनदेखा करने की प्रवृत्ति को बल मिल सकता है, जिससे महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • वैकल्पिक दृष्टिकोण: न्यायालय ने यह माना कि यह एक विधायी मामला है और संसद इसे बेहतर ढंग से संबोधित कर सकती है। यह विधायी हस्तक्षेप के लिए एक रास्ता खोलता है, ताकि या तो POSH अधिनियम में संशोधन किया जाए या राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता और आंतरिक निवारण तंत्र अनिवार्य किए जाएँ।

निष्कर्ष (Conclusion)

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय कानूनी technicalities को दर्शाता है, लेकिन यह महिला सुरक्षा और राजनीतिक सहभागिता के व्यापक लक्ष्यों के लिए एक चुनौती प्रस्तुत करता है। संसद के लिए यह आवश्यक है कि वह विधायी सुधारों पर विचार करे, ताकि राजनीतिक कार्यकर्ताओं सहित सभी कार्यक्षेत्रों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न के विरुद्ध comprehensive protection प्रदान की जा सके। साथ ही, राजनीतिक दलों को स्व-नियमन द्वारा सुरक्षित वातावरण बनाने की initiative लेनी चाहिए।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ