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दालों में आत्मनिर्भरता मिशन | Aatmanirbharta in Pulses Mission 2025

 यह योजना चर्चा में है क्योंकि

👉 केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1 अक्टूबर, 2025 को “दालों में आत्मनिर्भरता मिशन” (Aatmanirbharta in Pulses Mission) नामक एक महत्त्वाकांक्षी छह वर्षीय कार्यक्रम को मंजूरी दी। इसका उद्देश्य भारत को दाल उत्पादन में पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना, आयात पर निर्भरता घटाना और किसानों की आय में स्थायी वृद्धि करना है। 🌾🇮🇳


🌿 मुख्य जानकारी

  • 🗓 स्वीकृति तिथि: 1 अक्टूबर 2025
  • 📅 अवधि: 2025–26 से 2030–31 तक (6 वर्ष)
  • 💰 कुल वित्तीय प्रावधान: ₹11,440 करोड़

  • 🎯 प्रमुख लक्ष्य:

    • घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर 350 लाख टन तक ले जाना
    • आयात निर्भरता घटाना (वर्तमान में कुल मांग का 15–20%)
    • लगभग 2 करोड़ किसानों को सीधा लाभ देना
    • दलहन क्षेत्रफल 310 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाना और औसत उपज 1,130 किग्रा/हेक्टेयर करना

🌱 रणनीतिक घटक व प्रमुख विशेषताएं

1️⃣ उच्च गुणवत्ता वाले बीज और अनुसंधान

  • 88 लाख नि:शुल्क बीज किट किसानों को दी जाएंगी।
  • बीज होंगे — उच्च उपज देने वाले, कीट व रोग प्रतिरोधी और जलवायु सहनशील।
  • 126 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज से 370 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने का लक्ष्य।
  • राज्यों द्वारा 5-वर्षीय रोलिंग बीज उत्पादन योजनाएँ तैयार की जाएंगी।
  • ‘साथी पोर्टल’ से बीज वितरण और गुणवत्ता की निगरानी की जाएगी।


2️⃣ क्षेत्र विस्तार और फसल विविधीकरण

  • 35 लाख हेक्टेयर परती और कम उपयोग वाली भूमि को दलहन खेती के तहत लाया जाएगा।
  • क्षेत्रीय कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुसार फसल विविधीकरण और अंतरफसल प्रणाली को बढ़ावा।
  • मृदा स्वास्थ्य योजना, PM-आशा, और कृषि मशीनीकरण उप-मिशन जैसी मौजूदा योजनाओं से अभिसरण किया जाएगा।


3️⃣ बुनियादी ढांचा और कटाई-पश्चात प्रबंधन

  • 1,000 दाल प्रसंस्करण व पैकेजिंग इकाइयाँ स्थापित की जाएंगी।
  • प्रति इकाई अधिकतम ₹25 लाख तक की सब्सिडी दी जाएगी।
  • उद्देश्य — भंडारण क्षमता सुधारना, पोस्ट-हार्वेस्ट नुकसान कम करना और किसानों की आय बढ़ाना।


4️⃣ क्लस्टर आधारित दृष्टिकोण

  • क्षेत्र विशेष की आवश्यकताओं के अनुसार क्लस्टर बनाकर योजनाओं का कार्यान्वयन
  • स्थानीय किस्मों को बढ़ावा, संसाधनों का कुशल उपयोग और स्थानीय बाजार से सीधा जुड़ाव


5️⃣ खरीद और बाजार स्थिरता

  • तुअर, उड़द और मसूर की 100% खरीद अगले 4 वर्षों तक मूल्य समर्थन योजना (PSP) के अंतर्गत सुनिश्चित।
  • पंजीकृत किसान MSP सुरक्षा का लाभ उठा सकेंगे।
  • NAFED और NCCF के ज़रिए क्रियान्वयन।
  • मूल्य निगरानी तंत्र से किसानों में भरोसा बढ़ेगा।


🌾 मिशन का महत्त्व

क्षेत्र

प्रभाव

🌍 आयात निर्भरता

घटने से विदेशी मुद्रा की बचत होगी और वैश्विक मूल्य उतार-चढ़ाव का असर कम पड़ेगा।

👨‍🌾 किसानों की आय

उच्च गुणवत्ता वाले बीज, बुनियादी ढांचा, MSP और प्रसंस्करण से लाभ।

🥦 पोषण सुरक्षा

दालें प्रोटीन व सूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रमुख स्रोत हैं।

🌱 पर्यावरणीय लाभ

दालें नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता सुधरती है। साथ ही ये कम पानी में उगने वाली फसलें हैं।


⚠️ संभावित चुनौतियाँ

  • नई किस्मों को अपनाने में किसानों की धीमी गति।
  • ग्रामीण स्तर पर बीज वितरण और प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना में विलंब।
  • 4 वर्ष बाद खरीद तंत्र को निरंतर बनाए रखना।
  • पारदर्शी निगरानी और संसाधनों का समय पर लाभार्थियों तक पहुँचना सुनिश्चित करना।


📝 अतिरिक्त तथ्य / संदर्भ

  • 🌍 भारत विश्व में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और आयातक है।
  • 🇮🇳 प्रमुख दलहनी फसलें: तुअर, उड़द, मूंग, चना और मसूर।
  • 🥇 मध्य प्रदेश दाल उत्पादन में देश में अग्रणी राज्य है।

  • 🏢 महत्वपूर्ण संस्थान व योजनाएँ:

    • ICAR – Indian Council of Agricultural Research (स्थापना 1929)
    • NAFED – National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India Ltd (1958)
    • CACP – Commission for Agricultural Costs and Prices
    • PM-आशा योजना (2018)
    • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना (2015)
  • 📈 2022–23 में भारत में कुल दाल उत्पादन लगभग 270 लाख टन रहा था, जबकि कुल मांग लगभग 300–320 लाख टन के बीच थी।

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