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पंडित छन्नूलाल मिश्र | ठुमरी के अमर गायक | Pt. Chhannulal Mishra

पंडित छन्नूलाल मिश्र (1936 – 2025): ठुमरी के अमर गायक

2 अक्तूबर 2025 को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत जगत ने एक युगपुरुष को खो दिया। बनारस घराने के पूरब अंग के अंतिम महान प्रतिपादकों में से एक पंडित छन्नूलाल मिश्र का 89 वर्ष की आयु में निधन हो गया। पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जी अपनी विशिष्ट ठुमरी शैली और शास्त्रीय गायन की गहराई के लिए देश-विदेश में विख्यात थे।


🪔 प्रारंभिक जीवन और संगीत साधना

3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले में जन्मे पंडित जी का बचपन का नाम मोहन लाल मिश्र था। संगीत की शिक्षा उन्होंने परिवार में ही प्रारंभ की। उनके पिता पंडित बद्री प्रसाद मिश्र स्वयं एक कुशल गायक थे। आगे चलकर उन्होंने उस्ताद अब्दुल गनी खान (किराना घराना) से गहराई से शास्त्रीय संगीत सीखा। साथ ही, पद्मभूषण ठाकुर जयदेव सिंह से भी संगीत की बारीकियाँ आत्मसात कीं।


🎤 गायन शैली और विशेषता

पंडित छन्नूलाल मिश्र शास्त्रीय ख्याल गायन के साथ-साथ पूर्वी ठुमरी की आत्मीय प्रस्तुति के लिए विशेष रूप से पहचाने जाते थे। उनकी गायकी में राग की शुद्धता और भावों की गहराई का अद्भुत संगम देखने को मिलता था। उन्होंने बनारस घराने की परंपरागत शैली को न केवल जीवित रखा, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुँचाया।


🏅 पुरस्कार और सम्मान

संगीत में उनके असाधारण योगदान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। उन्हें सुर सिंगार संसद, शिरोमणि अवॉर्ड, नौशाद अवॉर्ड, यश भारती अवॉर्ड, बिहार संगीत शिरोमणि अवॉर्ड, और लंदन म्यूजिक फेस्टिवल में विशेष सम्मान सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार प्राप्त हुए।

  • 2000 – संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
  • 2010 – पद्मभूषण
  • 2020 – पद्म विभूषण (भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान)
  • उन्हें संगीत जगत में “ज्वेल ऑफ ठुमरी” की उपाधि भी दी गई थी।


🎶 ठुमरी: भावनाओं से भरी गायन परंपरा

ठुमरी को अक्सर “हिंदुस्तानी संगीत का गीत रूप” कहा जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय शैली 18वीं शताब्दी में पूर्वी उत्तर प्रदेश — विशेषकर लखनऊ और बनारस — में विकसित हुई। इसके स्वरूप को सादिक अली शाह ने विशेष रूप से संवारा था।

इस गायन शैली में कठोर राग व्याकरण की अपेक्षा भावनाओं और आशुरचना (improvisation) पर ज़ोर होता है। प्रेम, विरह, भक्ति और विशेष रूप से राधा-कृष्ण लीला इसके मूल विषय रहे हैं। इसकी भाषा में ब्रजभाषा, अवधी, हिंदी, तथा कहीं-कहीं उर्दू और संस्कृत का भी मेल देखने को मिलता है।

ठुमरी का गहरा संबंध कथक नृत्य से भी है — दोनों मिलकर भावों की कहानी को अधिक जीवंत बना देते हैं। इसमें होरी, कजरी, दादरा, झूला और चैती जैसी लोक-शैलियों का भी प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है।


🌿 ठुमरी के प्रकार और घराने

  1. पूर्वी ठुमरी – धीमी गति, भावप्रधान और गीतात्मक शैली, प्रायः बनारस घराने से जुड़ी।
  2. पंजाबी ठुमरी – तेज गति, ऊर्जा से भरपूर और पटियाला घराने की पहचान।

प्रमुख घराने

  • बनारस घराना – गिरिजा देवी, रसूलन बाई, सिद्धेश्वरी देवी, छन्नूलाल मिश्र
  • लखनऊ घराना – दरबारी परिष्कार और नवाबी रंगत, बेगम अख्तर जैसी हस्तियाँ
  • पटियाला घराना – लय पर ज़ोर और जीवंत प्रस्तुति शैली


🌸 संगीत में अमिट छाप

पंडित छन्नूलाल मिश्र ने ठुमरी को सिर्फ मंचीय कला नहीं, बल्कि जन-जन के हृदय से जोड़ने का कार्य किया। उनकी गायकी में बनारस की माटी की सोंधी सुगंध, भावों की गहराई और शास्त्रीयता की ऊँचाई साथ-साथ चलती थी। उनके जाने से एक युग का अवसान हुआ है, लेकिन उनकी धुनें और बंदिशें सदियों तक संगीत प्रेमियों को प्रेरित करती रहेंगी।

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