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न्यायपालिका में लंबित मामले | समाधान और न्यायिक सुधार

📰 चर्चा में क्यों?

भारत में बढ़ते न्यायिक लंबित मामलों (5 करोड़+) को कम करने और तेज़ व लागत-प्रभावी न्याय उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्रों — जैसे मध्यस्थता, पंचनिर्णय और लोक अदालतों — को सुदृढ़ करने पर विशेष ध्यान देना शुरू किया है।


⚖️ ए.डी.आर. (Alternative Dispute Resolution) की अवधारणा

  • औपचारिक न्यायालयों से बाहर विवादों के निपटारे की प्रक्रिया
  • मुख्य रूप:
    • 📝 मध्यस्थता (Mediation)
    • 🤝 सुलह (Conciliation)
    • 💬 बातचीत (Negotiation)
    • ⚖️ लोक अदालतें (Lok Adalats)

🔸 संवैधानिक आधार

  • अनुच्छेद 39(ए) → न्याय तक समान पहुँच व मुफ्त कानूनी सहायता का प्रावधान।

🔸 वैधानिक आधार

  • CPC, 1908 की धारा 89 → अदालतों को ADR की ओर विवाद भेजने की शक्ति।
  • मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (संशोधन 2021) → कानूनी ढांचा + संस्थागत मध्यस्थता की गुणवत्ता बढ़ाना।
  • मध्यस्थता अधिनियम, 2023 → मुकदमे-पूर्व मध्यस्थता अनिवार्य की गई।
  • लोक अदालतें — विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत स्थापित।


🏛 लोक अदालतें

  • भारत में सबसे प्रभावी व सुलभ ADR मंच।
  • पहली लोक अदालत: 1999, गुजरात।
  • स्वरूप:
    • स्थायी लोक अदालत
    • राष्ट्रीय लोक अदालत
    • ई-लोक अदालत
  • फैसले अंतिम होते हैं; अपील नहीं, लेकिन असंतुष्ट पक्ष नियमित अदालत जा सकता है।
  • गरीब व वंचित वर्गों के लिए नि:शुल्क, अनौपचारिक व त्वरित न्याय


🌐 भारत में न्यायिक लंबित मामलों की स्थिति (India Justice Report 2024)

  • कुल लंबित मामले: 5 करोड़+
  • जिला न्यायालयों में रिक्तियाँ: 20%+
  • उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 33% पद रिक्त
  • यूपी, बिहार, आंध्र प्रदेश में लंबित मामले सर्वाधिक।
  • कई उच्च न्यायालयों व अधीनस्थ न्यायालयों में 10 वर्ष से अधिक पुराने मामले लंबित।
  • न्यायाधीशों पर भारी बोझ — कुछ राज्यों में प्रति न्यायाधीश 4,000+ मामले।

➡️ यह स्थिति औपचारिक न्याय प्रणाली के संरचनात्मक असंतुलन को दर्शाती है और मजबूत ADR तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित करती है।


🗣 मध्यस्थता: सामाजिक परिवर्तन का साधन

भारत के पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के अनुसार —

“मध्यस्थता सिर्फ कानूनी औज़ार नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का मंच है।”
यह सामाजिक मानदंडों को संवैधानिक मूल्यों से जोड़ती है, जिससे विवाद आपसी समझ और सहमति से सुलझते हैं।


🇮🇳 ‘पंच परमेश्वर’ सिद्धांत

  • केंद्रीय विधि मंत्रालय ने हाल में भारत के पारंपरिक पंच परमेश्वर सिद्धांत से प्रेरणा लेकर सभ्यतागत लोकाचार आधारित कानूनी सुधारों पर बल दिया है।
  • यह सिद्धांत सामूहिक सहमति व समुदाय-आधारित विवाद समाधान का प्रतीक है।


📈 ADR को मजबूत करने के लाभ

  1. 🕒 लंबित मामलों व देरी में कमी

    • दीवानी व वाणिज्यिक विवादों को अदालत से बाहर ले जाकर न्यायाधीशों को गंभीर मामलों पर फोकस करने का अवसर।

  1. 🌍 पहुँच व समावेशिता में वृद्धि

    • लोक अदालतें व सामुदायिक मध्यस्थता तंत्र ग्रामीण व हाशिए के वर्गों के लिए न्याय सुलभ बनाते हैं।

  1. 💼 वैश्विक विश्वास में वृद्धि

    • वाणिज्यिक विवादों का त्वरित समाधान → निवेशक-अनुकूल माहौल → Ease of Doing Business में सुधार।


📝 निष्कर्ष

ADR तंत्र का सशक्तिकरण भारत की न्यायिक व्यवस्था में संरचनात्मक सुधार की दिशा में एक रणनीतिक कदम है।
यह न केवल न्याय की समयबद्ध व सुलभ उपलब्धता सुनिश्चित करता है, बल्कि सामुदायिक सद्भाव, निवेशकों का भरोसा और संविधानिक मूल्यों की जड़ों को मज़बूत करता है।

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