Recent Posts

header ads

आंध्र प्रदेश: देवरागट्टू बन्नी उत्सव हिंसा | Devaragattu Banni Violence

 आंध्र प्रदेश: देवरागट्टू बन्नी उत्सव में हिंसा की घटनाएँ

आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले के होलागुंडा मंडल में आयोजित प्राचीन देवरागट्टू बन्नी उत्सव के दौरान हाल ही में हिंसा भड़क उठी। यह उत्सव न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय परंपरा और सामुदायिक पहचान का एक महत्वपूर्ण अंग भी माना जाता है।


🏯 देवरागट्टू बन्नी उत्सव: ऐतिहासिक और पौराणिक पृष्ठभूमि

देवरागट्टू बन्नी उत्सव का इतिहास विजयनगर साम्राज्य तक जाता है। यह पर्व 800 फीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित श्री माला मल्लेश्वर स्वामी मंदिर के वार्षिक समारोह का अभिन्न हिस्सा है।

📜 पौराणिक कथा

  • प्राचीन काल में मणि और मल्लासुर नामक दो राक्षस देवरागट्टू पहाड़ियों में निवास करते थे।
  • ये राक्षस तपस्या कर रहे संतों को यातनाएँ देते थे।
  • संतों ने भगवान और देवी पार्वती से प्रार्थना की।
  • भगवान कूर्मावतार (कछुए का अवतार) के रूप में विजयादशमी की रात पहाड़ी की चोटी पर प्रकट हुए और राक्षसों का वध किया।
  • राक्षसों ने ‘रक्षापद’ नामक स्थान पर मृत्यु के समय प्रतिवर्ष नरबलि की प्रार्थना की, जिसे अस्वीकार कर दिया गया। इसके स्थान पर उन्हें विजयादशमी की रात मुट्ठी भर रक्त अर्पित करने का आश्वासन दिया गया।


🔥 उत्सव का अनुष्ठान

  • इस पर्व के दौरान श्री माला मल्लेश्वर स्वामी और पार्वती देवी की पूजा होती है।
  • ग्रामीण देवताओं की मूर्तियों को पहाड़ी से नीचे ले जाते हैं।
  • एक समूह अश्ववाहनम पर मूर्तियों को रखकर जलती हुई मशालें और धातु की छल्लों वाली लंबी छड़ियाँ लेकर ढोल की थाप पर नृत्य और करतब करते हुए जुलूस निकालता है।
  • रायलसीमा, कर्नाटक और अन्य क्षेत्रों से आए भक्त अश्ववाहन को रोकने का प्रयास करते हैं। उनका विश्वास है कि यदि वे मूर्तियों को कुछ समय के लिए रोकते हैं, तो उनके गांव में समृद्धि आती है।


⚠️ हिंसा और विवाद

हाल ही में उत्सव के दौरान यह धार्मिक और सांस्कृतिक उत्साह हिंसक झड़पों में बदल गया।

  • मूर्तियों को रोकने और आंदोलन को नियंत्रित करने में भक्तों के बीच टकराव हुआ।
  • यह घटना इस पारंपरिक अनुष्ठान में सुरक्षा और नियमों की आवश्यकता को उजागर करती है।


🌟 संक्षिप्त महत्व

देवरागट्टू बन्नी उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत और सामुदायिक एकता का प्रतीक है।

  • यह विजयनगर काल की परंपराओं को जीवित रखता है।
  • स्थानीय लोगों के सामाजिक और धार्मिक जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • हालांकि हाल की हिंसा ने इसकी सुरक्षा और अनुशासन पर सवाल उठाए हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ