मुंशी प्रेमचंद : समाज के यथार्थ के सशक्त कथाकार
भारतीय साहित्य के इतिहास में मुंशी प्रेमचंद (1880–1936) का नाम उस लेखक के रूप में अमर है जिन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का साधन न बनाकर समाज परिवर्तन का औज़ार बनाया। उन्होंने अपने यथार्थवादी लेखन से सामंती व्यवस्था, जातिवाद, आर्थिक असमानता, नारी शोषण और ग्रामीण जीवन की कठोर सच्चाइयों को बड़ी सजीवता से प्रस्तुत किया।
वे केवल उपन्यासकार या कथाकार नहीं, बल्कि जनजीवन के प्रवक्ता थे — जो समाज की आत्मा को शब्दों में ढालने की क्षमता रखते थे।
📚 जीवन परिचय (संक्षेप में + अतिरिक्त तथ्य)
- जन्म: 31 जुलाई 1880, लमही गाँव (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
- असली नाम: धनपत राय श्रीवास्तव
- पिता एक डाक विभाग में कर्मचारी थे, परिवार मध्यमवर्गीय था।
- माँ के जल्दी निधन और पिता की दूसरी शादी ने उनके बचपन को कठिन बना दिया — यही संवेदनशीलता और संघर्ष बाद में उनके लेखन की नींव बने।
- प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी और इलाहाबाद में हुई।
- उन्होंने शिक्षक के रूप में कार्य किया और धीरे-धीरे पदोन्नति पाकर स्कूल इंस्पेक्टर बने।
- लेखन की शुरुआत उर्दू भाषा में की और ‘नवाब राय’ नाम से लेख प्रकाशित करने लगे।
- 1908 में कहानी संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ को अंग्रेजी सरकार ने जब्त कर लिया, जिसके बाद उन्होंने ‘मुंशी प्रेमचंद’ नाम से हिंदी में लेखन प्रारंभ किया।
👉 अतिरिक्त तथ्य:
- उन्होंने 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी छोड़ दी और पूरा जीवन लेखन व समाज सेवा को समर्पित कर दिया।
- 1930 के दशक में उन्होंने “हंस” (Hans) नामक पत्रिका का संपादन किया, जो प्रगतिशील लेखन का महत्वपूर्ण मंच बनी।
- उन्होंने कुछ समय तक फिल्मों के लिए पटकथा लेखन भी किया (जैसे बॉम्बे टॉकीज में)।
✍️ साहित्यिक योगदान
मुंशी प्रेमचंद ने लगभग 300 कहानियाँ, 14 उपन्यास, अनेक निबंध, नाटक और संपादकीय लिखे। उनका लेखन सामाजिक यथार्थवाद का जीवंत दस्तावेज़ है।
🪶 प्रमुख उपन्यास:
- गोदान – भारतीय किसान “होरी” के जीवन के माध्यम से ग्रामीण भारत की गरीबी, शोषण और आशाओं की गाथा।
- गबन – मध्यवर्गीय नैतिक पतन और धनलोलुपता पर गहरी चोट।
- सेवासदन – नारी जीवन की विवशता, वेश्यावृत्ति और सामाजिक पाखंड पर आधारित।
- कर्मभूमि – नैतिकता, त्याग और स्वतंत्रता संग्राम में युवाओं की भूमिका पर केंद्रित।
- रंगभूमि – औद्योगीकरण बनाम मानवता के संघर्ष का महाकाव्यात्मक चित्रण।
🪶 प्रसिद्ध कहानियाँ:
- ईदगाह – नन्हे हामिद के त्याग और संवेदनशीलता की कथा।
- पूस की रात – गरीबी और ठंड में किसान के संघर्ष की सच्चाई।
- कफन – सामाजिक संवेदना को झकझोर देने वाली रचना।
- नमक का दरोगा, बड़े घर की बेटी, शतरंज के खिलाड़ी — सामाजिक व्यवस्था, नैतिकता और मानवीय मनोविज्ञान के गहरे चित्रण।
✨ प्रेमचंद के साहित्य की विशेषताएँ
- यथार्थवाद के प्रवर्तक — उन्होंने कल्पनालोक नहीं, समाज का यथार्थ लिखा।
- मानवता का स्वर — उनकी रचनाओं में करुणा, संवेदना और नैतिकता की गूंज है।
- सरल, सहज भाषा — हिंदी-उर्दू मिश्रित भाषा ने आम पाठक से गहरा संबंध जोड़ा।
- नारी और किसान जीवन पर फोकस — उन्होंने उन वर्गों को आवाज़ दी जो साहित्य में प्रायः हाशिये पर थे।
- प्रगतिशील दृष्टिकोण — वे पाखंड, अन्याय और सामाजिक बुराइयों के कटु आलोचक थे।
- सामाजिक परिवर्तन का आह्वान — उनके साहित्य में केवल चित्रण नहीं, समाधान और चेतना भी निहित है।
🕊️ निधन और विरासत
- निधन: 8 अक्टूबर 1936, वाराणसी में।
- अंतिम उपन्यास: ‘मंगलसूत्र’ (अधूरा) – जो उनकी असीम रचनात्मकता का प्रमाण है।
- आज भी प्रेमचंद के पात्र — चाहे वह ‘होरी’ हो, ‘हामिद’ हो या ‘घीसू-माधव’ — समाज के आईने की तरह हमारे सामने खड़े होते हैं।
👉 अतिरिक्त तथ्य:
- प्रेमचंद को अक्सर “उपन्यास सम्राट” की उपाधि दी जाती है।
- उनकी रचनाएँ आज भी स्कूल-कॉलेजों के पाठ्यक्रम में शामिल हैं।
- उनके साहित्य पर अनेक नाटक, फ़िल्में और धारावाहिक बनाए गए हैं, जैसे सत्यजीत रे की फ़िल्म “शतरंज के खिलाड़ी”।
🌿 समकालीन प्रासंगिकता
प्रेमचंद का साहित्य आज भी उतना ही प्रासंगिक है, क्योंकि:
- ‘कफन’ की गरीबी आज भी समाज में मौजूद है।
- ‘गोदान’ के किसान आज भी संघर्ष कर रहे हैं।
- ‘नमक का दरोगा’ जैसी ईमानदारी आज भी प्रेरणा देती है।
उनकी रचनाएँ हमें यह सिखाती हैं कि साहित्य केवल कल्पना नहीं, बल्कि जीवंत यथार्थ का संवेदनशील दस्तावेज़ है, जो समाज को आईना दिखाने और उसे दिशा देने की शक्ति रखता है।
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