ई-कचरा प्रबंधन: भारत की चुनौतियाँ और रास्ता
सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis)
संदर्भ + पृष्ठभूमि (Context + Background):
ई-कचरा (इलेक्ट्रॉनिक कचरा) उन सभी निष्क्रिय या अनुपयोगी इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को संदर्भित करता है, जिनमें स्मार्टफोन, लैपटॉप, रेफ्रिजरेटर से लेकर औद्योगिक मशीनरी शामिल हैं। भारत में प्रतिवर्ष लाखों टन ई-कचरा उत्पन्न होता है। इस कचरे में सोना, चांदी, तांबा जैसे कीमती धातु और लिथियम, कोबाल्ट जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्व मौजूद होते हैं, जिनके पुनर्चक्रण से देश की आयात निर्भरता कम करने और एक वृत्ताकार अर्थव्यवस्था (Circular Economy) स्थापित करने का महत्वपूर्ण अवसर है।
मुद्दे/चुनौतियाँ (Issues/Challenges):
भारत का ई-कचरा प्रबंधन तंत्र कई गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है:
- असंगठित क्षेत्र का दबदबा: ई-कचरा पुनर्चक्रण पर असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व है, जो मरम्मत और पुर्जों की निकासी पर केंद्रित है, न कि पूर्ण पुनर्चक्रण पर।
- पारदर्शिता की कमी: 'पेपर ट्रेडिंग' की समस्या व्यापक है, जहाँ पुनर्चक्रण की मात्रा को वास्तविकता से अधिक दिखाकर प्रोत्साहन भुगतान प्राप्त किए जाते हैं।
- सामग्री ट्रेसबिलिटी का अभाव: उत्पादों के जीवनचक्र की जानकारी का अभाव है, क्योंकि उपकरण कई मालिकों के बीच बदलते रहते हैं, जिससे पुनर्चक्रण श्रृंखला प्रभावित होती है।
- पर्यावरणीय व स्वास्थ्य जोखिम: अनुचित पुनर्चक्रण से सीसा, पारा जैसे विषाक्त पदार्थ पर्यावरण में फैलते हैं और असंगठित क्षेत्र के श्रमिक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम झेलते हैं।
- नीतिगत कार्यान्वयन में कमियाँ: विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) के बावजूद, नियमों का प्रभावी क्रियान्वयन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
राष्ट्रीय + अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव (National + International Impact):
- राष्ट्रीय प्रभाव: ई-कचरे के खराब प्रबंधन से दुर्लभ खनिजों के पुनर्प्राप्ति का आर्थिक अवसर खो जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर विनिर्माण के लिए भारत की आयात निर्भरता बनी रहती है। पर्यावरण प्रदूषण दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याएं और पारिस्थितिकी तंत्र की क्षति का कारण बनता है।
- अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव: वैश्विक स्तर पर, ई-कचरा प्रबंधन संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (SDGs), विशेष रूप से उत्तरदायी उपभोग और उत्पादन (लक्ष्य 12) एवं स्वच्छ पानी और स्वच्छता (लक्ष्य 6) से सीधे जुड़ा हुआ है। भारत की सफलता वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में महत्वपूर्ण खनिजों की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों में योगदान दे सकती है।
आगे का रास्ता / समाधान (Way Forward / Solutions):
- औपचारिक ढांचे को मजबूत करना: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा रीसाइक्लरों की नियमित और सख्त ऑडिटिंग की जानी चाहिए।
- तृतीय-पक्ष ऑडिट अनिवार्य करना: पर्यावरणीय सुरक्षा मानकों के अनुपालन की जांच के लिए स्वतंत्र ऑडिट की व्यवस्था लागू की जाए।
- राष्ट्रीय ट्रैकिंग डेटाबेस का निर्माण: उत्पादों के जीवनचक्र को ट्रैक करने वाला एक राष्ट्रीय डेटाबेस विकसित किया जाए, जिससे सामग्री ट्रेसबिलिटी सुनिश्चित हो सके।
- जागरूकता अभियान चलाना: उपभोक्ताओं को सुरक्षित निपटान के लिए प्रेरित करने और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को प्रशिक्षित करने हेतु विस्तृत अभियान चलाए जाएं।
- नीतिगत सुधार: EPR ढांचे को और सख्त बनाया जाए ताकि निर्माता और रीसाइक्लर पूरी जिम्मेदारी के साथ कार्य करें।
यूपीएससी प्रासंगिकता (UPSC Relevance)
किस GS Paper (I/II/III/IV), Essay या Optional से जुड़ा है:
- GS Paper III: यह मुख्य रूप से इसी पेपर से संबंधित है। विषयों में शामिल हैं: आर्थिक विकास (संसाधन दक्षता, विनिर्माण), पर्यावरणीय प्रभाव (प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन), आपदा प्रबंधन (विषाक्त पदार्थों से उत्पन्न जोखिम) और सुरक्षा चुनौतियाँ (असंगठित क्षेत्र में श्रमिक सुरक्षा)।
- GS Paper II: शासन (नीति कार्यान्वयन, विनियामक संस्थान जैसे CPCB), सामाजिक न्याय (असंगठित श्रमिकों का कल्याण) और स्वास्थ्य (पर्यावरणीय स्वास्थ्य प्रभाव) से जुड़े पहलू।
- निबंध (Essay): "भारत में ई-कचरा: एक आर्थिक अवसर या पर्यावरणीय संकट?" या "सतत विकास की राह में भारत की चुनौतियाँ" जैसे विषयों पर लिखा जा सकता है।
कीवर्ड और आयाम (Keywords & Dimensions):
- शासन (Governance): विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), नीति कार्यान्वयन, विनियमन।
- अर्थव्यवस्था (Economy): वृत्ताकार अर्थव्यवस्था (Circular Economy), आयात निर्भरता, दुर्लभ खनिज, संसाधन दक्षता, औपचारिक बनाम असंगठित क्षेत्र।
- पर्यावरण (Environment): विषाक्त पदार्थ, मृदा और जल प्रदूषण, अपशिष्ट प्रबंधन, सतत विकास लक्ष्य (SDG)।
- सामाजिक (Society): असंगठित श्रमिक, स्वास्थ्य जोखिम, सामाजिक न्याय, जन जागरूकता।
यूपीएससी पिछले वर्ष के प्रश्न (UPSC Previous Year Questions)
संभावित प्रश्न भविष्य के लिए (Expected Possible Question in Future):
- प्रारंभिक परीक्षा: ई-कचरे से संबंधित विभिन्न योजनाओं, रासायनिक तत्वों और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों पर बहुविकल्पीय प्रश्न।
- मुख्य परीक्षा: "ई-कचरा प्रबंधन में 'विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व' (EPR) की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। भारत में EPR के कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिए।"
उत्तर लेखन अभ्यास (Answer Writing Practice)
Q. भारत में ई-कचरा प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए। एक सतत और समग्र ई-कचरा प्रबंधन रणनीति विकसित करने के लिए आवश्यक उपाय सुझाइए। (15 अंक)
👉 मॉडल उत्तर संरचना (Model Answer Structure):
परिचय (Introduction):
- ई-कचरे की परिभाषा के साथ शुरुआत करें। भारत में उत्पन्न होने वाले ई-कचरे की मात्रा (जैसे, 2022 में 41.7 लाख मीट्रिक टन) का उल्लेख करते हुए इसके प्रबंधन के महत्व को रेखांकित करें।
- इसे एक जटिल चुनौती के रूप में पेश करें, जो पर्यावरण, अर्थव्यवस्था और सामाजिक स्वास्थ्य के चौराहे पर खड़ी है।
मुख्य भाग (Body):
- चुनौतियों का विश्लेषण (Analysis of Challenges):
- संरचनात्मक चुनौती: असंगठित क्षेत्र का दबदबा और औपचारिक पुनर्चक्रण प्रणाली की कमजोरी।
- आर्थिक चुनौती: कीमती धातुओं के पुनर्चक्रण के अवसर का भरपूर दोहन न हो पाना, जिससे आयात निर्भरता बनी रहती है।
- पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य चुनौती: अनुचित निपटान से होने वाला प्रदूषण और श्रमिकों के स्वास्थ्य पर जोखिम।
- नीतिगत एवं प्रशासनिक चुनौती: EPR जैसे नियमों के कार्यान्वयन में कमी, पेपर ट्रेडिंग और ट्रेसबिलिटी की समस्या।
- आवश्यक उपाय (Suggested Measures):
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण: औपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र को मजबूत करने के लिए निवेश को प्रोत्साहन और CPCB की निगरानी क्षमता बढ़ाना।
- प्रौद्योगिकी एवं पारदर्शिता: राष्ट्रीय ट्रैकिंग सिस्टम और अनिवार्य तृतीय-पक्ष ऑडिट को लागू करना।
- हितधारक भागीदारी: उपभोक्ता जागरूकता अभियान, निर्माताओं की जिम्मेदारी बढ़ाना और असंगठित श्रमिकों को प्रशिक्षण व सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
- नवाचार को बढ़ावा: दक्षता पूर्ण और कम लागत वाली पुनर्चक्रण तकनीकों के अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहन।
निष्कर्ष (Conclusion):
- इस बात पर जोर दें कि ई-कचरा केवल एक निपटान की समस्या नहीं, बल्कि संसाधन सुरक्षा का मुद्दा है।
- एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए निष्कर्ष निकालें कि एक प्रभावी रणनीति के लिए मजबूत नीति, तकनीकी नवाचार और सामूहिक सामाजिक जिम्मेदारी के समन्वय की आवश्यकता है। इससे न केवल पर्यावरण की रक्षा होगी, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था को भी लाभ मिलेगा।
कीवर्ड एक्सप्लेनेशन (Keyword Explanation)
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility - EPR): यह एक पर्यावरणीय नीति दृष्टिकोण है जिसके तहत उत्पाद के पूरे जीवनचक्र, विशेष रूप से उसके निपटान के लिए उत्पादक की जिम्मेदारी बढ़ा दी जाती है। भारत में, इसका मतलब है कि इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माताओं को अपने उत्पादों द्वारा उत्पन्न ई-कचरे के संग्रह और उचित पुनर्चक्रण को सुनिश्चित करना होगा।
- वृत्ताकार अर्थव्यवस्था (Circular Economy): यह एक ऐसी आर्थिक प्रणाली है जिसका लक्ष्य अपशिष्ट को खत्म करना और संसाधनों का लगातार उपयोग सुनिश्चित करना है। ई-कचरे के संदर्भ में, इसका मतलब है पुराने उपकरणों से कीमती सामग्री को निकालकर उन्हें नए उत्पादों में वापस लाना, 'ले-बनाए-फेंको' (Take-Make-Dispose) वाली पारंपरिक रैखिक अर्थव्यवस्था के विपरीत।
- दुर्लभ पृथ्वी तत्व (Rare Earth Elements): ये ऐसे धातु तत्वों का एक समूह है जो आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, जैसे स्मार्टफोन, कंप्यूटर और हाइब्रिड कारों की बैटरियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनमें लिथियम, कोबाल्ट और नियोडिमियम जैसे तत्व शामिल हैं। इनकी आपूर्ति सीमित और भू-राजनीतिक रूप से संवेदनशील है, इसलिए पुनर्चक्रण इन्हें प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है।
References
- Government Schemes for Electronics and Semiconductor Manufacturing - NDTV
- Women Empowerment Schemes - Jagran
- September 2025 Financial Deadlines and Rules - Livemint
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