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पूछताछ के दौरान वकील से परामर्श का अधिकार | Supreme Court Notice

परिचय एवं राष्ट्रीय महत्व

भारत के संविधान और आपराधिक न्याय प्रणाली में वकील से परामर्श का अधिकार व्यक्ति की गरिमा, स्वतंत्रता और निष्पक्ष न्याय का अभिन्न हिस्सा है।
15 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस अधिकार के असमान व असंगत लागू होने पर केंद्र, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
यह कदम मानवाधिकारों की सुरक्षा और जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हो सकता है।


📝 सारांश एवं विश्लेषण (Summary & Analysis)

तत्व

विवरण

घटना

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी सरकारों को नोटिस जारी

तिथि

15 अक्टूबर 2025

मुद्दा

पूछताछ/जांच में वकील से परामर्श के अधिकार का असमान लागू होना

संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 20(3), 21, 22

प्रमुख केस

नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी (1978)

याचिकाकर्ता

अधिवक्ता शफी माथर

प्रभाव

कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकार संरक्षण



📊 संवैधानिक और कानूनी प्रावधान

  • अनुच्छेद 20(3): स्व-दोषारोपण के खिलाफ संरक्षण।
  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार; इसमें निष्पक्ष जांच और सुनवाई का अधिकार शामिल है।
  • अनुच्छेद 22: गिरफ्तारी के बाद वकील से परामर्श और कानूनी सहायता का अधिकार।
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 38: गिरफ्तार व्यक्ति को अपने पसंद के वकील से मिलने का अधिकार है, भले ही पूछताछ के दौरान वकील की पूरी समय उपस्थिति अनिवार्य न हो।

📌 प्रमुख न्यायिक उदाहरण:

  • नंदिनी सत्पथी बनाम पी.एल. दानी (1978) — सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूछताछ के दौरान वकील से परामर्श का अधिकार मौलिक है और व्यक्ति को स्व-दोषारोपण से बचाने में अहम भूमिका निभाता है।


⚠️ मुद्दे और चुनौतियाँ (Issues & Challenges)

  1. यातना और दुरुपयोग: वकील की अनुपस्थिति में हिरासत में यातना और दबाव की घटनाएं अधिक होती हैं।

    • ‘National Campaign Against Torture’ (2020) रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में 125 हिरासत में मौतें दर्ज की गईं।

  1. निष्पक्षता पर सवाल: सीमित कानूनी पहुंच से जांच की पारदर्शिता घटती है।
  2. कानूनी असमानता: गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदाय वकील नहीं रख पाते, जिससे अधिकार असमान हो जाता है।

  3. विशेष कानूनों में दिशानिर्देशों की कमी: PMLA, NDPS जैसे कानूनों में पूछताछ के दौरान वकील की उपस्थिति के लिए स्पष्ट नियम नहीं हैं।

  4. न्यायिक आदेशों की अवहेलना: पिछले आदेशों के बावजूद जांच एजेंसियां अक्सर अधिकारों का पालन नहीं करतीं।

  5. असंगत लागूकरण: कुछ मामलों में वकील को केवल कुछ हिस्सों में अनुमति दी जाती है — जो संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है।


🌐 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

  • 🏛️ राष्ट्रीय:
    • नागरिक अधिकारों की सुरक्षा को मजबूती।
    • आपराधिक न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।
    • पुलिस सुधार की दिशा में एक ठोस कदम।
  • 🌍 अंतर्राष्ट्रीय:
    • भारत की मानवाधिकार स्थिति पर वैश्विक नजर।
    • UN Human Rights Council और अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा सराहना या आलोचना की संभावना।
    • वैश्विक न्याय मानकों के अनुरूप सुधार का अवसर।

🛣️ आगे की राह / समाधान (Way Forward / Solutions)

  1. विशेष दिशानिर्देश: PMLA, NDPS जैसे कानूनों में वकील की उपस्थिति को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाए।

  2. निगरानी तंत्र: स्वतंत्र निकाय हिरासत में पूछताछ की निगरानी करे।

  3. प्रशिक्षण: पुलिस व जांच एजेंसियों को मानवाधिकार व संवैधानिक प्रावधानों पर नियमित प्रशिक्षण।

  4. कानूनी सहायता तक पहुंच: गरीबों के लिए मुफ्त वकील और जागरूकता अभियान।

  5. न्यायिक हस्तक्षेप: सुप्रीम कोर्ट/हाई कोर्ट इस पर नियमित ऑडिट और जवाबदेही सुनिश्चित करें।

  6. कानून में संशोधन: नागरिक सुरक्षा संहिता में संशोधन कर वकील की उपस्थिति को पूर्ण रूप से अनिवार्य किया जाए।


📚 UPSC प्रासंगिकता (GS Papers / Essay Topics)

  • GS Paper 2: संविधान, शासन व्यवस्था, न्यायिक हस्तक्षेप, अधिकारों की रक्षा
  • GS Paper 4 (Ethics): पारदर्शिता, जवाबदेही, मानवाधिकार
  • Essay Topics:
    • “मानवाधिकार और न्यायिक जवाबदेही: भारतीय परिप्रेक्ष्य”
    • “न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता: वकील की भूमिका और नागरिक अधिकार”


📝 UPSC PYQs (Prelims & Mains)

Prelims (संभावित):

  1. अनुच्छेद 20(3) किससे संबंधित है?
    a) समान अवसर का अधिकार
    b) धार्मिक स्वतंत्रता
    c) स्व-दोषारोपण के विरुद्ध संरक्षण ✅
    d) मतदान का अधिकार

Mains (संभावित):

“पूछताछ के दौरान वकील से परामर्श का अधिकार, केवल कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बल्कि मानव गरिमा की रक्षा का भी एक साधन है।” विश्लेषण करें। (250 शब्द)


✍️ उत्तर लेखन अभ्यास (250 शब्द)

परिचय:
भारत में वकील से परामर्श का अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त एक मौलिक सुरक्षा है, जो जांच प्रक्रिया की पारदर्शिता और नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा करता है।

मुख्य भाग:

  • अनुच्छेद 20(3), 21 और 22 इस अधिकार की संवैधानिक नींव रखते हैं।
  • 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों और केंद्र से जवाब मांगते हुए इस अधिकार की असंगत लागू स्थिति को गंभीरता से लिया।
  • गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग कानूनी सहायता से वंचित रहते हैं, जिससे असमानता बढ़ती है।
  • वकील की उपस्थिति यातना, दबाव और झूठे स्वीकारोक्ति के खतरे को कम करती है।
  • विशेष कानूनों में दिशानिर्देशों की कमी, न्यायिक आदेशों की अनदेखी और पुलिस सुधार की कमी बड़ी चुनौतियाँ हैं।

निष्कर्ष:
यह अधिकार न केवल न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करता है बल्कि मानव गरिमा की रक्षा भी करता है। इसे मजबूत करने के लिए कानूनी संशोधन, प्रशिक्षण और निगरानी अनिवार्य है।


🧠 Keywords Explanation

कीवर्ड

व्याख्या

Right to Counsel

पूछताछ/गिरफ्तारी के दौरान व्यक्ति का वकील से परामर्श का संवैधानिक अधिकार।

Article 20(3)

स्व-दोषारोपण के खिलाफ संरक्षण।

Article 21

जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।

Article 22

गिरफ्तारी के बाद कानूनी सहायता व वकील से परामर्श।

Nandini Satpathy Case 1978

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला जिसमें पूछताछ के दौरान वकील की उपस्थिति को मौलिक अधिकार माना गया।

BCSC (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita), Section 38

पूछताछ में वकील से मिलने के अधिकार का वैधानिक प्रावधान।

PMLA/NDPS

विशेष कानून जिनमें वकील की उपस्थिति पर स्पष्ट दिशा-निर्देशों की कमी है।

Custodial Torture

हिरासत में यातना; भारत में मानवाधिकार चिंता का बड़ा विषय।

Judicial Oversight

न्यायालयों द्वारा जांच प्रक्रियाओं की निगरानी।

Human Dignity & Rights

यह अधिकार केवल कानूनी नहीं, बल्कि नैतिक और मानवाधिकार का प्रश्न भी है।





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